राजा मिलिंद तथा नागसेन का संवाद १
"भंते (स्वामिन)! आप किस नाम से जाने जाते है?"
"नागसेन... नाम से (मुझे) पुकारते हैं? ...किंतु यह केवल
व्यवहार के लिए संज्ञा भर है, क्योंकि यथार्थ में ऐसा कोई
एक पुरुष (आत्मा) नहीं है।
"भंते! यदि एक पुरुष नहीं है तो कौन
आपको वस्त्र... भोजन देता है? कौन उसको भोग करता
है? कौन शील (सदाचार) की
रक्षा करता है? कौन ध्यान... का अभ्यास करता है? कौन
आर्यमार्ग के फल निर्वाण का साक्षात्कार करता
है? ...यदि ऐसी बात है तो न पाप है और
न पुण्य, न पाप और पुण्य का कोई करने वाला है... न
करने वाला है।... न पाप और पुण्य... के ...फल होते
हैं? यदि आपको कोई मार डाले तो किसी का
मारना नहीं हुआ।... (फिर) नागसेन क्या
है? ...क्या ये केश नागसेन हैं?"
"नहीं महाराज!"
"ये रोयें नागसेन हैं?"
"नहीं महाराज!"
"ये नख, दाँत, चमड़ा, माँस, स्नायु, हड्डी,
मज्जा, बुक्क, हृदय, यकृत, क्लोमिक,
प्लीहा, फुफ्फुस, आँत,
पतली, आँत, पेट, पाखाना, पित्त, कफ,
पीव, लोहू, पसीना, मेद, आँसू,
चर्बी, राल, नासामल, कर्णमल, मस्तिष्क
नागसेन हैं?"
"नहीं महाराज"
"तब क्या आपका रूप (भौतिक तत्त्व) ...वेदना ...संज्ञा...
संस्कार या विज्ञान नागसेन हैं?"
"नहीं महाराज!"
"...तो क्या.... रूप... विज्ञान (पाँचों स्कंध)
सभी एक साथ नागसेन हैं?"
"नहीं महाराज!"
"...तो क्या... रूप आदि से भिन्न कोई नागसेन है?"
"नहीं महाराज!"
"भंते! मैं आपसे पूछते-पूछते थक गया किंतु नागसेन क्या
है। इसका पता नहीं लग सका। तो क्या
नागसेन केवल शब्दमात्र है? आखिर नागसेन है कौन?"
"महाराज! ...क्या आप पैदल चल कर यहाँ आये या
किसी सवारी पर ?"
"भंते! ... मैं रथ पर आया।"
"महाराज!... तो मुझे बतावें कि आपका रथ कहाँ है? क्या
हरिस (ईषा) रथ है?"
"नहीं भंते!"
"क्या अक्ष रथ है?"
"नहीं भंते!"
"क्या चक्के रथ हैं?"
"नहीं भंते!
"क्या रथ का पंजर... रस्सियाँ... लगाम... चाबुक... रथ है?
"नहीं भंते!
"महाराज! क्या हरिस आदि सभी एक साथ
रथ हैं?
"नहीं भंते!
"महाराज! क्या हरिस आदि के परे कहीं
रथ है?"
"नहीं भंते!"
"महाराज! मैं आपसे पूछते-पूछते थक गया, किंतु यह पता
नहीं लगा कि रथ कहाँ है? क्या रथ केवल
एक मात्र है। आखिर यह रथ है क्या? आप झूठ बोलते
हैं कि रथ नहीं है! महाराज! सारे
जम्बूद्वीप (भारत) के आप सबसे बड़े राजा
हैं; भला किससे डरकर आप झूठ बोलते हैं?
"भंते नागसेन! मैं झूठ नहीं बोलता। हरिस
आदि रथ के अवयवों के आधार पर केवल व्यवहार के लिए
'रथ' ऐसा एक नाम बोला जाता है।"
"महाराज! बहुत ठीक, आपने जान लिया कि
रथ क्या है। इसी तरह मेरे केश आदि के
आधार पर केवल व्यवहार के लिए 'नागसेन' ऐसा एक नाम
बोला जाता है। परंतु, परमार्थ में नागसेन कोई एक पुरुष
विद्यमान नहीं है। भिक्षुणी
वज्रा ने भगवान् के सामने इसीलिए कहा था-
'जैसे अवयवों के आधार पर 'रथ' संज्ञा
होती है, उसी तरह (रूप
आदि) स्कंधों के होने से एक सत्त्व (जीव)
समझा जाता है।"
-MANISH RAWAT TSUNAMI.
SOURCE-MILINDPANH
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