वृक्षारोपण पर निबंध
वृक्षारोपण (Plantation)
वृक्ष हमारी प्रकृति का श्रृंगार करते हैं। जो महत्व एक ग़ज़ल में काफ़िया का होता है वही महत्व हमारे पर्यावरण में पेड़ों का होता है। तात्पर्य यह है कि हम हमारे पर्यावरण के अस्तित्व की कल्पना बिना वृक्ष के नहीं कर सकते हैं। अतएव यह नितांत आवश्यक हो गया है कि अब वन संसाधनों एवं पर्यावरण की मानवीय परवरिश की जाए। अतः यह कहना है कि:-
मकां बनाते हुए छत बहुत जरूरी है,
बचा के सेहन में लेकिन शजर भी रखना है।
- फातिमा हसन
वृक्षों या वनों से लाभ (Benefits from trees or forests)
जब मनुष्य अपनी सभ्यता के क्रमिक विकास के प्रथम चरण में था या प्राणी जगत अपने जैव विकास के आदिम या क्रांतिक अवस्था में था, तब से अब तक वृक्षों की उपयोगिता निरंतर बनी रही है। अर्थात भोजन, वस्त्र व आवास की पूर्ति इन संसाधनों द्वारा ही पूर्ण हुई। उदाहरण स्वरूप हमने आदिम चरण में वृक्षों की छालों को पहना, पत्तों का आवरण बनाया, भोजन के रूप में इनके फलों का सेवन किया, इनकी लकड़ी का विभिन्न प्रकार से उपयोग किया; जैसे प्रकाश के लिए मशाल बनाया, ऊर्जा के लिए आग जलाया, आवास के लिए बल्ली. थाम या पटरी बनाए। प्रथम विकास के अंतिम चरण में दरवाजा, खिड़की, हत्थे व उपकरण बनाए। गाड़ियां, चक्र व परिवहन के प्रारंभिक व्यवस्था पूर्णतयः वन संसाधनों पर टिकी थी। जैसे- बैलगाड़ी, नाव आदि। बड़े आकार के पत्तों का प्रयोग खाना खाने के लिए किया गया। सूखे पत्तों को जलाकर ऊर्जा प्राप्त की तथा खाद व उर्वरा सामग्री बनाया।
खानाबदोशी एवं पशु चारक से स्थाई एवं व्यवसायिक बनने तक में अर्थात रोटी, कपड़ा एवं मकान से भोजन, वस्त्र एवं आवास तक पहुंचने में वृक्ष एवं इनके द्वारा प्रदत्त सामग्री का बहुत अहम योगदान रहा है। मनुष्य अपने इतिहास काल से ही वृक्षों के महत्व को ध्यान में रखकर उनको धर्म, देवता या राक्षस से जोड़ता रहा है। इसके साथ वैदिक काल, हड़प्पा काल, वज्रयान काल व इससे इतर समय में भी प्राप्त हुए हैं।
वृक्ष वायुमंडल में वायुमात्रा संतुलन का कार्य करते हैं। विदित है कि वृक्ष प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में जंतुओं के विपरीत कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण कर आक्सीजन मुक्त करते हैं। जलचक्र को नियमित करते हैं, वर्षा कराते हैं। मृदा के कटाव व बहाव को रोकते हैं। पक्षियों के लिए आवास होते हैं, छाया प्रदान करते है। व् वृक्षों का फल, फूल, पत्ती, तना एवं जड़ तकसा, हम सभी का विभिन्न स्वरूपों में इस्तेमाल करते हैं। वृक्ष की लकड़ी का ही हमारे जीवन भर उपयोग होता है, जिस पर आधारित एक गीत है; जिसके बोल हैं "देख तमाशा लकड़ी का।"
वृक्षों की कमी से हानि (Loss From Lack Of Trees)
यदि वृक्षाच्छान या वृक्षों में कमी आई तो सर्वप्रथम प्राणदायी गैस आक्सीजन का अनुपात घटने से जनजीवन प्रभावित होगा। वृक्षों की कमी से जलचक्र प्रभावित होगा, तापमान में वृद्धि होगी। परिणामतः बड़े-बड़े ग्लेशियर पिघल सकते हैं, जिससे सामुद्रिक जलस्तर में वृद्धि से तटवर्ती छिछले बैंक तथा छोटे जजीरों के जलमग्न होने की आशंका बढ़ जाती है। वृक्ष मिट्टी के कटाव को रोकने में सक्षम होते हैं तथा इनकी कमी से यह प्रक्रिया गतिशील हो जाएगी, जिससे नुकसान होने की आशंका बनी रहती है। वृक्षों की कमी से जनी समस्याएं इन पंक्तियों से स्पष्ट हो जाती हैं -
जंगल मुदाफअत के हलकान हो गए हैं
सब रास्ते आंधियों के आसान हो गए हैं,
लोगों का आना जाना मालूम था पर अब के
घर पहले से ज़ियादा सुनसान हो गए हैं।
बदकिस्मती से हम हैं, इन कश्तियों के वारिश
जिनके हवा से अहद-ओ-पैमान हो गए हैं।
- मुसव्विर
वनाधिक्यता से हानि (Loss of forestry)
यद्यपि वर्तमान दौर में वृक्षों का अनुपात घटा है फिर भी यहां यह उल्लेखनीय है कि यदि वृक्षों या वनों की सघनता बढ़ जाए या क्षेत्र संतुलन से अधिक हो जाए तो क्या होगा ? प्रथम तो यह कि अतिसघनता में वृक्षों या वनों का वाणिज्यिक दोहन / इस्तेमाल कम हो जाएगा बढ़ती जनसंख्या हेतु क्षेत्र कम हो जायेगा। वृक्षों एवं वन्य जीवों का विकास त्वरित गति से होगा, जिससे वाइल्ड लाइफ बिग गेम क्षेत्र का प्रसार होने की सम्भावना बढ़ जाएगी। यह मानवीय गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। उपर्युक्त चिन्ताएं अभी गौण हैं; क्यूंकि अभी वृक्षाच्छादन या वनाच्छादन उपयुक्त स्तर से नीचे है।
Note : यह निबंध नीम के वृक्ष पर लिखा गया है, इसलिए आगे नीम के वृक्ष पर संक्षिप्त चर्चा की जा रही है. आप किसी अन्य वृक्ष का वृक्षारोपण करके उसके बारे में लिख सकते है.
रोपित वृक्ष का विवरण (Description of planted tree)
जिस वृक्ष का रोपण किया गया है, उसे नीम नाम से जाना जाता है। जो कि एक पर्णपाती वृक्ष है। यह भारत समेत नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, थाईलैंड आदि देशों में पाया जाता है। इसका वानस्पतिक नाम Azadirachta indica है। यह वृक्ष विशालकायता के साथ-साथ औषधीय गुण भी रखता है। चर्म रोग, घाव धुलने, चेचक, चेचक, मधुमेह, दांत की समस्या, रक्त विकार आदि बीमारियों में यह वृक्ष फलदाई होता है। नीम का वृक्ष उष्ण कटिबंध में छाया के लिए प्रचलित है, क्योंकि यह अपेक्षाकृत अधिक शीतलता प्रदान करता है। यह पुरातन समय से मानव समाज में पूजनीय तथा उपयोगी रहा है।
निष्कर्ष (Conclusion)
वृक्षों एवं वन संपदा ने मानव सभ्यता एवं संस्कृति को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, संस्कृतिक, मौद्रिक एवं तमाम भौतिक व अमूर्त रूपों से समृद्ध किया है। जीवन की संभावना इनके बिना अपूर्ण है। वर्तमान डिजिटल युग में भी यह उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने कि पूर्व में रहे हैं तथा आगे भी रहेंगे। इनका पोषण हमारी जिम्मेवारी है। अतः हम गुनगुना सकते हैं कि -
जीवन का आधार वृक्ष है,
धरती का श्रृंगार वृक्ष है।
प्राणवायु दे रहे सभी को
ऐसे परम उदार वृक्ष हैं।।
Content/Written by M.R. Tsunami
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